चांदनी रात में, जहां तारे टिमटिमाते थे,
एक गाँव था जहाँ हरियाली और प्रकृति मुस्कुराते थे।
गाँव के बीचो-बीच थी एक सुंदर धरा,
कहते थे लोग उसे ‘धरती का दिल’, पेड़ों का घरा।
एक दिन कुछ लोग आए बड़े शहर से,
हाथ में तहकीकात की फाइलें और मन में कुछ करने की अड़ी।
“खोदो यहाँ” उन्होंने कहा, “कीमती है खजाना भूतल के नीचे”,
गाँववाले चिंतित, उनके दिल थे धड़कन के पीछे।
एक बालक था वहाँ, नाम था सोहन,
प्रकृति का प्रेमी, माटी से था अनोखा बंधन।
वह जानता था हरकतें उस ‘धरती के दिल’ की,
अंजान था नहीं वह प्रकृति के हर दिल की।
सोहन ने गावं के लोगों को समझाना शुरु किया,
“माँ धरा का दिल है वह, नहीं कोई खिलौना प्यारा।
खिलौने से खेलकर फेंक दोगे, पर धरा माँ का दिल तोड़ोगे,
तो किससे मांगोगे पनाह जब निज जीवन हो कोड़ा?”
धीरे-धीरे गाँववाले समझने लगे,
सोहन की बातों में सच्चाई के रंग लगे।
ना चाहिए उन्हें सोना, ना चाहिए हीरे जड़ावाला काजल,
चाहिए बस खुशहाली, और साँस लेने को साफ हवा का महल।
शोर उठा, गाँववालों ने एकजुट होकर कहना शुरु किया,
“नहीं देंगे हम धरती माँ का दिल”, कुछ ने नारे भी लगाया।
धरती माँ के हरे-भरे दिल को बचाने,
सोहन और गाँववाले हर संघर्ष को तैयार थे सहने।
कई दिन और रात बीत गए, ना जाने कितनी बारिशें आई,
पर गाँववालों का हौसला, उस धरती के दिल सा दृढ़ रहा, ना कोई कमी आई।
आखिरकार, वो लोग शहर से आए, वापस लौट गए,
और गाँव का वह छोटा सा परिवार, धरती माँ के दिल के पास, खुशियों में छूट गए।
ये कहानी सिर्फ एक गाँव या सोहन की नहीं,
यह हर उस दिल की आवाज है, जिसे है प्रकृति से विशेष प्रेम भी।
सिखाती है ये हमें, कि मानवता का वास्तविक खजाना,
प्रकृति की रक्षा में ही छुपा है, और इसी में है हमारा खुशहाल कल का नजराना।