गाँव का नाम था चंदनपुर। यहाँ की गलियाँ और हवाएँ भी भाई-बहन के रिश्ते की मिठास से भरी थीं। इसी गाँव में रहते थे राधा और मोहन, जिन्हें गाँव के लोग प्यार से ‘चंदनपुर की जान’ कहते थे। राधा और मोहन का रिश्ता बचपन से ही खास था। वे हर साल रक्षा बंधन का त्योहार बड़े धूमधाम से मनाते थे।
एक दिन, राधा को एक पुराना पत्र मिला, जिसमें लिखा था, “राधा, इस रक्षा बंधन पर तुम्हें एक अनमोल तोहफा मिलेगा।” पत्र पर न तो कोई नाम था और न ही कोई पहचान। यह पत्र राधा को हैरान कर गया। उसने मोहन को यह बात बताई, और दोनों ने मिलकर यह जानने का निर्णय लिया कि यह पत्र किसने भेजा है।
जैसे-जैसे रक्षा बंधन का दिन नजदीक आ रहा था, राधा और मोहन की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी। उन्होंने गाँव के बुजुर्गों से भी इस बारे में बात की, पर किसी को भी इस पत्र का राज़ नहीं पता था। एक दिन, राधा को अपने दादा जी की पुरानी डायरी मिली। उसमें एक किस्सा लिखा था, जिसमें एक रहस्यमयी खजाने का जिक्र था।
राधा और मोहन ने तय किया कि वे इस खजाने की खोज करेंगे। उन्होंने डायरी में मिले संकेतों का पालन किया और गाँव के बाहर स्थित पुराने मंदिर की ओर बढ़े। मंदिर के पास उन्हें एक गुफा मिली। गुफा के अंदर जाते ही उन्हें एक ताले से बंद दरवाजा मिला।
डायरी में लिखा था कि ताला खोलने के लिए भाई-बहन को मिलकर एक मंत्र बोलना होगा। राधा और मोहन ने मंत्र पढ़ा और ताला खुल गया। दरवाजा खुलते ही उन्हें एक चमकता हुआ बक्सा दिखाई दिया। बक्से के अंदर एक सुंदर राखी और एक पत्र था। पत्र में लिखा था, “यह राखी देवताओं द्वारा बनाई गई है, और इसे बांधने से भाई-बहन का रिश्ता अटूट हो जाएगा।”
राधा ने मोहन को राखी बांधी और मोहन ने वचन दिया कि वह हमेशा राधा की रक्षा करेगा। तभी वहाँ एक रोशनी प्रकट हुई और एक वृद्ध व्यक्ति प्रकट हुए। उन्होंने कहा, “मैं तुम्हारे पूर्वज हूँ। यह खजाना तुम्हारे लिए ही था। इस राखी की शक्ति से तुम्हारा रिश्ता और भी मजबूत हो जाएगा।”
राधा और मोहन ने उस दिन को अपनी जिंदगी का सबसे खास दिन माना। उन्होंने समझा कि यह रक्षा बंधन सिर्फ एक त्योहार नहीं बल्कि एक भावना है, जो भाई-बहन के रिश्ते को और भी मजबूत बनाती है।
रक्षा बंधन का दिन आया और पूरे गाँव में धूमधाम से मनाया गया। राधा और मोहन ने अपनी खोज की कहानी गाँव वालों को सुनाई और सबने उनकी हिम्मत की प्रशंसा की। अब हर साल, जब भी रक्षा बंधन आता, राधा और मोहन उस खजाने की राखी को विशेष रूप से पहनते और अपने रिश्ते को और भी गहरा करते।
समय बीतता गया, और राधा और मोहन का रिश्ता और भी मजबूत होता गया। उन्होंने अपने बच्चों को भी यह कहानी सुनाई और सिखाया कि रक्षा बंधन का त्योहार सिर्फ एक धागे का बंधन नहीं है, बल्कि एक वादा है, जो जीवन भर निभाना होता है।
इस तरह, चंदनपुर की गलियों में राधा और मोहन की कहानी एक मिसाल बन गई। हर भाई और बहन ने उनसे प्रेरणा ली और अपने रिश्ते को और भी मजबूत बनाने का संकल्प लिया। इस तरह रक्षा बंधन का त्योहार हर साल और भी खास होता गया और भाई-बहन के रिश्ते की मिठास से चंदनपुर की हवाएँ हमेशा महकती रहीं।