गुलज़ार गलियों, खिलखिलाते चेहरे, और बहती नदी के किनारे बसे गांव में अर्जुन और आयशा की मोहब्बत की गवाही देने के लिए हवा भी थम सी जाती थी। अर्जुन एक ख़ामोश शायर था, जो अपनी शायरी में आयशा की मुस्कान को उकेरता था, और आयशा एक लोक नर्तकी, जिसके नृत्य में अर्जुन की कविता रवानी पाती थी।
उनकी प्रेम कहानी की शुरुआत एक मेले के दिन हुई, जब अर्जुन ने आयशा को पहली बार नाचते देखा था। उस नाच में कुछ ऐसा जादू था कि अर्जुन की कलम से बरबस ही आयशा का नाम बहने लगा। दिनों दिन, अर्जुन की शायरी और आयशा के नृत्य में उनका प्यार खिल उठा।
वक़्त के साथ उनकी मोहब्बत और परवान चढ़ी, लेकिन कहते हैं न कि सच्चे प्यार की राह कभी आसान नहीं होती। आयशा के पिता, गांव के सरपंच, इस प्रेम कहानी के खिलाफ थे। वे चाहते थे कि आयशा एक धनी व्यापारी के बेटे से शादी करे। लेकिन अर्जुन और आयशा का प्यार कोई साधारण प्यार नहीं था।
एक रात, चाँदनी बिखरी हुई थी, और अर्जुन ने निर्णय लिया कि वो आयशा के लिए शायरी की एक किताब लिखेगा। हर कविता उनके प्यार के हर पहलू को दर्शाती। और जब आयशा ने इसे पढ़ा, उसकी आँखों में आँसुओं की जगह खुशियों के दीप जल उठे।
उन्होंने फैसला किया कि वे गांव छोड़ देंगे और अपनी नई दुनिया का निर्माण करेंगे, एक ऐसी दुनिया जहाँ उनके प्यार की कोई सीमाएँ न हों। लेकिन किसी को विदा कहना इतना आसान नहीं होता, और उन्हें पता था कि अपने सपनों को जीने के लिए उन्हें कई कुर्बानियाँ देनी पड़ेंगी।
जैसे-जैसे उनके पलायन की खबर सरपंच तक पहुँची, उनका पीछा किया गया, मगर प्रेम ने उन्हें हिम्मत दी। एक सच्चे प्रेम की शक्ति से सरपंच का दिल भी पसीज गया और अंत में उन्होंने इस प्यार को अपनी मंजूरी दे दी।
अर्जुन और आयशा ने आखिरकार अपने प्यार को समाज की मुहर के साथ पाया। अर्जुन की शायरी और आयशा का नृत्य उनके प्रेम की अनूठी भाषा बन गए जो प्रेम की सरहदों को पार कर गया।