किसी विशाल जंगल में, नीली-हरियाली चोंच वाली एक नन्ही चिड़िया रहती थी। उसका नाम था चिन्नी। चिन्नी बहुत ही जिज्ञासु और चुलबुली थी, परंतु उसका एक डर भी था – वह उंची नहीं उड़ पाती थी। दरअसल, जब वह बहुत छोटी थी तब एक बार गिर गई थी और तब से उसे ऊँचे आसमान में उड़ने से डर लगता था।
चिन्नी को हर दिन अपने छोटे से पंखों से जमीन के बहुत करीब-करीब उड़ान भरते देख जंगल के अन्य परिंदे चकित थे। एक दिन, जंगल में एक बड़ा तूफान आया। उस तूफान ने सब चीजों को उलट-पुलट कर रख दिया। चिन्नी का घोंसला भी एक ऊंचे पेड़ से गिर कर जमीन पर आ गया। चिन्नी ने जब देखा कि उसके अंडे सही सलामत हैं, तो उसने उन्हें बचाने का निश्चय किया।
समस्या यह थी कि अब उसे एक ऊंचे पेड़ पर अपना नया घोंसला बनाना था। लेकिन उसके डर के चलते यह नामुमकिन सा लग रहा था। अपने डर को मात देने के लिए चिन्नी ने कई तरह के अभ्यास शुरू किए। वह हर दिन थोड़ा और ऊंचा उड़ने की कोशिश करती।
इस दौरान, उसने अनुभव किया कि उसके जंगल के दोस्त भी उसका साथ दे रहे थे। हाथी से लेकर खरगोश तक, सभी चिन्नी को हौसला दे रहे थे। खासकर गिलहरी नामक एक मित्र ने उसकी बहुत मदद की। गिलहरी ने चिन्नी को बताया कि हर बार गिरने के बाद उठना किस तरह ज़रूरी होता है, और यही बात उड़ान भरने पर भी लागू होती है।
चिन्नी ने अंत में अपने डर पर विजय प्राप्त की और ऊंचे पेड़ पर अपने नए घोंसले का निर्माण किया। जब उसके अंडों से नन्हें चूजे बाहर आए, तो वह आकाश में ऊंची-ऊँची उड़ान भरते हुए अपने बच्चों को दुनिया दिखाती रही। चिन्नी ने न केवल अपने डर को पराजित किया बल्कि यह भी सिखाया कि संगठन और मित्रता से कोई भी बड़ी बाधा पार की जा सकती है।