एक गांव था बहुत पुराना, नीले आसमान के तले,
जहां हर चाँदनी रात को, चुपके से उतरती एक परी कले।
वह खेलती थी चांदी की किरणों से, हर बालक के सपने सजाती,
और उनके अंधेरे कमरों में, उम्मीदों के दीप जलाती।
उस गांव में एक लड़का था, नाम था अर्जुन,
अपनी माँ के साथ वह रहता था, उनका एक छोटा सा झोंपड़ा बुन।
अर्जुन ने सुनी थी परियों की कहानियाँ अपनी नानी से,
पर कभी देखा ना था उसने, वो चाँदनी परी का चेहरे।
एक रात को, जब चांद था पूरा, आसमान पर राज करता,
जाग उठा अर्जुन, देखने को वो चाँदनी जो सजीवन करता।
चुपके से वह झोंपड़े से निकला, परियों की खोज में,
कदम मिलते गए चाँदनी के संग, जैसे हो उनमें कोई रोशन सोच में।
वह पहुंचा उस स्थान पर, जहाँ परियों के होने का था विश्वास,
और तभी उसे दिखी वो परी, चमकती हुई जैसे चाँद की आस।
परी ने मुस्कुरा कर अर्जुन से कहा, “तुम्हारी इच्छा क्या है?”,
अर्जुन ने कहा, “मेरी माँ के लिए खुशियाँ, उनकी हर रात हो जैसे दिवाली की सजा है।”
परी ने चंदन की एक छड़ी घुमाई,
और अर्जुन की माँ के लिए आनंद की सुखद कहानी बनाई।
उसके बाद से हर रात, अर्जुन के घर में होता उत्सव का आभास,
उनकी खुशियां बिखरती गांव में, जैसे चाँदनी की परछाई दर्पण के पास।