यह कथा है एक छोटे से गांव की जहाँ शांति और हर्ष का माहौल था। उस गांव में एक सयानी और कुशल महिला रहती थी जिसका नाम था जानकी। जानकी का एक बड़ा परिवार था जिसमें उसका बेटा रामू, बहू सीता, और उनकी तीन छोटी बच्चियां शामिल थीं। जानकी की रसोई पूरे गांव में मशहूर थी, क्योंकि वह हर पकवान को अपने हाथों से बनाकर स्वाद में चार-चांद लगा देती थी।
समय बीतता गया और जानकी के अब बूढ़े होने के कारण उसकी हालत कमजोर होती गई। उसने अपने बेटे और बहू को बुलाकर कहा, “रामू और सीता, मेरी तबियत अब ठीक नहीं रहती इसलिए मैं चाहती हूं कि आज से रसोई की जिम्मेदारी तुम दोनों संभालो। लेकिन याद रखना, इस रसोई में हमेशा प्यार और सहयोग बना रहे।”
रामू और सीता ने उसकी बात मान ली और रसोई का काम संभालने का जिम्मा लिया। लेकिन जब रसोई का जिम्मा उनके ऊपर आया, तो आपसी मतभेद शुरू हो गए। रामू चाहता था कि खाना बनाना सिर्फ उसकी जिम्मेदारी हो, जबकि सीता भी रसोई में अपना योगदान देने की इच्छा रखती थी। धीरे-धीरे ये मतभेद झगड़े में बदल गए और रसोई का वातावरण गर्म हो गया।
इस समस्या को सुलझाने के लिए जानकी ने एक दिन दोनों को अपने पास बुलाया और कहा, “देखो बच्चों, रसोई का बंटवारा कैसे किया जा सकता है। एक रास्ता निकालना ही पड़ेगा ताकि सब कुछ शांति से चले।” जानकी ने सुझाव दिया कि रसोई को दो हिस्सों में बांटा जाए – एक हिस्सा रामू का और दूसरा हिस्सा सीता का।
अगले दिन से रामू और सीता ने अपना-अपना हिस्सा संभाला। रामू ने अपने हिस्से में अपने तरीके से खाना बनाना शुरू किया, जबकि सीता ने अपने हिस्से में अपनी पारंपरिक और स्वादिष्ट रेसिपीज के साथ काम शुरू किया। दोनों ने अपना-अपना काम बखूबी निभाया।
लेकिन कुछ ही दिनों में गाँववालों को यह महसूस हुआ कि अब जानकी के हाथों का वह पुराना स्वाद नहीं आ रहा था। रामू और सीता के बीच की संघर्ष का असर खाने के स्वाद पर पड़ने लगा था। लोग धीरे-धीरे उस पुराने खाने को याद करने लगे और जानकी से उसके बारे में पूछने लगे।
जानकी ने इस समस्या को समझा और एक दिन रामू और सीता को फिर से बुलाया। उसने कहा, “बच्चों, खाने का असली स्वाद प्यार, सहयोग और एकता में है। यदि तुम दोनों अलग-अलग काम करोगे, तो खाने में वह पहले जैसा स्वाद कभी नहीं आ सकेगा। हमें फिर से कोशिश करनी चाहिए कि दोनों मिलकर काम करें और अपने-अपने गुणों को मिलाएँ।”
रामू और सीता ने यह जानकी की बात मान ली और फिर से मिलकर काम करने का फैसला किया। इस बार उन्होंने मिलकर काम करने की योजना बनाई। रामू ने सीता की रेसिपीज को ध्यान से सीखा, और सीता ने रामू के खाना बनाने के तरीकों को समझा। दोनों ने मिलकर खाना बनाना शुरू किया, और धीरे-धीरे रसोई में फिर से वही पुराना स्वाद लौट आया।
गाँववाले फिर से जानकी की रसोई के खाने की तारीफ करने लगे। इस बार रामू और सीता के बीच कोई मतभेद नहीं था। दोनों ने मिलकर काम किया और रसोई को पहले से भी अधिक शानदार बना दिया। वे समझ गए थे कि जब तक सहयोग और एकता नहीं होगी, तब तक कोई काम सफल नहीं हो सकता।
इस प्रकार, रसोई का बंटवारा अब एकता और सहयोग में बदल गया। जानकी के आशीर्वाद और रामू-सीता के मेहनत से उनकी रसोई गाँव की सबसे प्रसिद्ध रसोई बन गई। जानकी ने उन्हें यह सिखाया कि किसी भी काम में सफल होने के लिए प्यार, सहयोग और एकता बहुत महत्वपूर्ण हैं।