भारत के एक शांत और सुनसान इलाके में एक छोटा सा गांव था, जिसका नाम था “सिद्धपुर”. यह गांव चारों तरफ से घने जंगलों से घिरा हुआ था, और यहां के लोग बेहद सीधे-सादे और मेहनती थे। इस गांव की एक खास बात थी कि यहां हर रात एक अजीब सी घंटी बजती थी, जिसका स्रोत आज तक कोई नहीं जान पाया था।
गांव के बच्चे इस घंटी की आवाज से बेहद डरते थे, और हर रात जब यह बजती, वे अपने माता-पिता के पास जाकर छुप जाते। गांव के बुजुर्ग कहते थे कि यह घंटी गांव की रक्षा करती है, लेकिन असलियत क्या थी, यह कोई नहीं जानता था।
एक दिन, गांव के मुखिया रामप्रसाद ने तय किया कि वह इस रहस्यमयी घंटी की सच्चाई का पता लगाकर ही मानेगा। उसने गांव के सबसे बहादुर युवकों को इकट्ठा किया और जंगल की ओर चल पड़ा। रामप्रसाद और उसके साथी जब जंगल के गहरे हिस्से में पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि वहां एक पुराना और टूटा-फूटा मंदिर था। मंदिर के अंदर एक प्राचीन घंटी लटकी हुई थी, जो खुद-ब-खुद बज रही थी।
रामप्रसाद ने अपने साथियों से कहा, “हमें इस घंटी को बजने से रोकना होगा। शायद यही हमारे गांव की मुसीबतों का कारण है।” लेकिन जैसे ही उन्होंने घंटी को छूने की कोशिश की, एक तेज रोशनी फैली और रामप्रसाद और उसके साथी बेहोश हो गए।
जब वे होश में आए, तो उन्होंने खुद को गांव से दूर, एक अजनबी जगह पर पाया। वहां कोई भी घर या लोग नहीं थे, सिर्फ एक बड़ा सा पेड़ खड़ा था। रामप्रसाद और उसके साथियों ने उस पेड़ के पास जाकर देखा, तो वहां एक शिलालेख था, जिस पर लिखा था, “यहां से वापस जाने का रास्ता नहीं है।”
वे सब घबराए हुए थे, लेकिन तभी उन्हें एक बूढ़ा आदमी दिखाई दिया। वह आदमी बोला, “तुम लोग उस घंटी की सच्चाई जानना चाहते हो? तो सुनो, यह घंटी इस गांव के लोगों की रक्षा करती थी, लेकिन एक दुष्ट जादूगर ने इसे श्रापित कर दिया। अब यह घंटी बजती है और जो इसे छूने की कोशिश करता है, वह इस रहस्यमयी जगह पर फंस जाता है।”
रामप्रसाद ने बूढ़े आदमी से पूछा, “तो क्या हम यहां से कभी वापस नहीं जा सकते?” बूढ़ा आदमी मुस्कराया और बोला, “एक ही रास्ता है, अगर तुम लोग उस जादूगर को हरा दो और घंटी को मुक्त कर दो, तो तुम लोग यहां से वापस जा सकते हो।”
रामप्रसाद और उसके साथियों ने साहस दिखाते हुए उस जादूगर को ढूंढने का फैसला किया। उन्होंने बूढ़े आदमी से जादूगर के ठिकाने का पता पूछा और उसकी ओर बढ़ चले। रास्ते में उन्हें कई अजीब और खौफनाक जीवों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और आखिरकार उस जादूगर के किले तक पहुंच गए।
वहां, एक भयंकर लड़ाई छिड़ गई। जादूगर ने अपनी सारी ताकत और जादू का इस्तेमाल किया, लेकिन रामप्रसाद और उसके साथियों ने अपनी साहस और एकता से उसे हरा दिया। जैसे ही जादूगर मरा, घंटी का श्राप टूट गया और वे सब वापस अपने गांव आ गए।
गांव के लोग रामप्रसाद और उसके साथियों का स्वागत करते हुए बोले, “तुम लोगों ने हमें एक बड़े संकट से बचा लिया। अब यह घंटी हमारे लिए सिर्फ एक साधारण घंटी है।” रामप्रसाद मुस्कराया और बोला, “यह सब हमारी एकता और साहस का परिणाम है।”
इस तरह, सिद्धपुर गांव एक बार फिर शांत और खुशहाल हो गया। गांव के लोग अब हर रात उस घंटी की आवाज सुनकर डरते नहीं थे, बल्कि उसे अपने साहस और एकता की निशानी मानते थे।
समाप्त