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स्वप्निल द्वीप की महागाथा (The Epic of the Dreamlike Isle)

The Epic of the Dreamlike Isle

विशाल सागर की गोद में था एक द्वीप… सबसे अलग, सबसे अनूप।
नाम था उसका ‘स्वप्निल द्वीप’, जैसे कोई सपना या कोई रूप।
उस द्वीप पर बसती थी एक सभ्यता अत्यंत प्राचीन,
जहाँ की प्रत्येक चीज़ थी जीवंत, और हर रीत अनदेखी अगणित।

द्वीप पर था एक महल, नीला आसमान छूता,
जहाँ राजकुमारी ‘निर्मिति’ रहती थी, सबके दिल को मोहता।
किंतु राजकुमारी अकेली थी, मन ही मन ढूंढती किसी मित्र को,
जो समझ सके उसकी मौन संकेतों को, चाहती थी वह उस बंधन को।

किस्से थे अनेक कि कैसे उस महल की दीवारें बोलती हैं,
समुद्र की लहरों के संगीत से ही उसके द्वार पर ये ध्वनि डोलती है।
राजकुमारी ने एक दिन तरंग में एक संदेश बंधा,
कहानियाँ सुनाने वाला आए, जो दिल की गहराइयों में तरंग हो संधा।

यह संदेश पहुंचा दूर देश में, एक यात्री ‘राहुल’ के पास,
जो था साहसी, कला का कीड़ा, और कहानियों में था ख़ास।
राहुल ने निर्णायक निश्चय किया, जाने का ‘स्वप्निल द्वीप’ ढूंढने,
‘निर्मिति’ राजकुमारी के महल की ओर चल पड़ा सपने बुनने।

समुद्र पार कर और तूफ़ानों से लड़, पहुँचा वह स्वप्निल किनारे,
जहाँ मिली उसे निर्मिति, और लगा ये मिलन सब विधियाँ सम्वारे।
राहुल ने सुनाई कहानियाँ, जिनमें थी उम्मीद और प्रेम की बातें,
निर्मिति की आँखों में दिखी दुनिया की अनगिनत सोनहली राते।

स्वप्निल द्वीप के लोग सारे, गवाह बने इस नई दोस्ती के,
कहानी उन्होंने सुनी, जिसमें बसी थी संगीत और कला की मस्ती के।
ये गाथा बनी प्रेम और साझेदारी की मिसाल,
‘स्वप्निल द्वीप’ और उसकी राजकुमारी ‘निर्मिति’ बनी किस्से का केंद्राल।

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