भूमिका:
मानवीय भावनाओं का एक संसार जहाँ शब्द रोशनी के तरंगों की तरह अधूरापन और पूर्णता के बीच अटखेलियाँ करते हैं। “रोशनी की एक अधूरी कविता” ऐसी ही कहानी है जिसकी रूपरेखा कविता के माध्यम से निर्मित हुई है।
उत्तर भारत के एक गाँव में कवि ‘अविनाश’ रहता था, जिसकी कविताएँ सिर्फ कागजों पर नहीं बल्कि गाँव वालों के दिलों पर भी अमिट छाप छोड़ती थीं। एक दिन अचानक से उसकी कविताओं में उत्साह की जगह एक विचारशून्यता और उदासी छा गई।
कहानी का विवरण:
अविनाश की कविताएँ गहरी और अर्थपूर्ण होती थीं, लेकिन उसकी एक कविता हमेशा अधूरी रह जाती। वह अपनी प्रियतमा ‘अलका’ के लिए कविता लिखना चाहता था, जो उसे छोड़ कर चली गई थी। उसकी हर कविता में अलका का जिक्र होता, लेकिन वह कभी उसे पूरी नहीं कर पाता था।
हर रोज, वह सूर्योदय के साथ शब्दों को आकार देना शुरू करता और ढलते सूरज के साथ उसे अधूरा छोड़ देता। खजूर के पेड़ के नीचे, अविनाश अपनी अधूरी कविताओं के साथ बैठा करता था, और पास ही खड़ी अलका की यादें उसे घेरे रहतीं।
एक दिन, गाँव में एक यात्रा करती कवयित्री ‘प्रिया’ आई। उसने अविनाश की अधूरी कविताएँ पढ़ीं और उनमें छिपे दर्द और प्रेम को महसूस किया। प्रिया ने अविनाश के साथ मिलकर उसकी कविताओं को पूरा करने की पहल की।
विचारों और कल्पनाओं के उत्सव में अविनाश और प्रिया ने मिलकर न सिर्फ कविताएँ पूरी कीं, बल्कि अविनाश के अंतर्मन को भी शांति प्रदान की। अविनाश की कविताओं का दर्द धीरे-धीरे आशा के गीतों में बदलने लगा।
कहानी का समापन उस अद्भुत क्षण पर होता है जब अविनाश अपनी “अधूरी कविता” को एक सुंदर समापन प्रदान करता है, प्रिया के साथ उसकी नई यात्रा की शुरुआत करते हुए।
नैतिक शिक्षा:
इस कहानी से हमें सीखने को मिलता है कि हर अधूरी कहानी या कविता में एक सुंदर समापन की संभावना छिपी होती है।