एक शांत और सुंदर झील के तट पर बुढ़ा बगुला रहता था। बगुले की उम्र हो चुकी थी, और अब वह ज्यादा शिकार नहीं कर पाता था। भूख और निराशा से ग्रस्त, उसने एक चालाक योजना बनाई।
वह झील के किनारे उदास बैठा रहता और जब अन्य जानवर उससे उसके उदासी का कारण पूछते, तो वह एक झूठी कहानी सुनाता। बगुला कहता कि उसने एक ज्योतिषी से सुना है कि जल्द ही झील सूख जाएगी और सभी जानवर मर जाएंगे। वह फिर कहता कि वह उनकी मदद कर सकता है और उन्हें दूसरी झील में ले जा सकता है जहाँ वे सब सुरक्षित रह सकते हैं।
अन्य जानवर बगुले की बातों में आ गए और उससे मदद की गुहार करने लगे। बगुला रोजाना कुछ जानवरों को उठाता और कथित नई झील की ओर ले जाने के बजाय, वह उन्हें एक बड़े पत्थर पर ले जाकर मार डालता और खा जाता।
इस प्रकार, बगुला ने एक के बाद एक कई जानवरों को धोखा दिया। लेकिन एक दिन, एक चतुर केकड़ा बगुले के पास आया और उसने भी बगुले से मदद मांगी। बगुला केकड़े को भी वहीं पत्थर पर ले गया जहाँ उसने अन्य जानवरों की हत्या की थी।
लेकिन जब बगुला केकड़े को खाने के लिए तैयार हुआ, केकड़े ने अपने मजबूत पंजों से बगुले की गरदन कस कर पकड़ ली और उसे इतनी जोर से दबाया कि बगुला तड़प-तड़प कर मर गया।
केकड़ा वापस झील में गया और उसने सभी जानवरों को बगुले की चालाकी के बारे में बताया और उन्हें यह भी बताया कि अब बगुला मर चुका है और वे सब सुरक्षित हैं। जानवर उसके चतुराई के लिए केकड़े का आभारी रहे और उन्होंने उसे अपना संरक्षक मान लिया।
इस कहानी से शिक्षा मिलती है कि धोखा देने वाला अवश्य ही एक दिन खुद धोखा खा जाता है, और जो धर्म और न्याय के मार्ग पर चलता है, वह अंततः जीतता है।