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अदृश्य मुकुट: The Invisible Crown – Lok Kathayen

The Invisible Crown

बहुत समय पहले की बात है, काशी के पास एक छोटे से गाँव में एक राजा रहता था जिनका नाम राजा हरिश्चंद्र था। उनके पास एक अदृश्य मुकुट था जिसे पहनने वाला अदृश्य हो जाता था। इस मुकुट के कारण राजा की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली हुई थी।

राजा हरिश्चंद्र नेक और उदार प्रजा के प्रति सदैव कृपालु रहते थे। लेकिन उनकी एक इच्छा थी की उनका यह अद्वितीय मुकुट हमेशा सुरक्षित रहे। इसीलिए उन्होंने एक विशेष पेड़ के नीचे इसे छिपा दिया था, और केवल राजा ही जानते थे कि मुकुट कहाँ है।

उसी गांव में एक गरीब चरवाहा था, जिसका नाम था दीनदयाल। दीनदयाल की इच्छा थी कि काश उसके पास भी पर्याप्त धन-दौलत हो तो वह अपने परिवार की बेहतर देखभाल कर सके।

एक दिन जंगल में भेड़ों को चराते समय दीनदयाल की नजर उस विशेष पेड़ पर पड़ी और वह थकान मिटाने के लिए वहाँ आराम करने लगा। न जाने कैसे उसका हाथ पेड़ के एक छेद में चला गया और उसे वहां कुछ महसूस हुआ। उसने जब वह चीज बाहर निकाली तो देखा कि वह एक अति सुंदर मुकुट था।

दीनदयाल को नहीं पता था कि वह मुकुट कितना खास है, लेकिन जैसे ही उसने मुकुट को अपने सिर पर रखा, वह अचानक अदृश्य हो गया। वह समझ गया कि यह कोई साधारण मुकुट नहीं है और उसने तय किया कि वह इसका उपयोग अच्छे कामों के लिए करेगा।

कई दिनों तक दीनदयाल ने अदृश्य रहकर गांव के लोगों

की मदद की। वह चोरों को पकड़ता, गरीबों की सहायता करता और उनके चेहरों पर खुशियां बिखेरता। लेकिन, उसने अपनी इस खासियत को कभी किसी से प्रकट नहीं किया।

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लेकिन, कहानियों की तरह, हकीकत में भी एक मोड़ आता है, राजा हरिश्चंद्र को जब यह पता चला की उनका मुकुट गायब है तो उन्होंने पूरे गांव में खबर फैला दी। उन्होंने सजा के रूप में ऐलान कर दिया कि जो कोई भी उनके मुकुट को वापस लाएगा, उसे बड़ा इनाम मिलेगा, और जो चोर होगा उसे बदा दंड। दीनदयाल को समझ में आ गया कि यह मुकुट राजा का है।

दीनदयाल ने यह निर्णय लिया कि वह मुकुट वापस कर देगा क्योंकि वह नैतिकता और सत्य की राह पर चलने वाला था। वह अदृश्य होकर राजा के महल में गया और मुकुट को वापस उसी स्थान पर रख दिया जहाँ से वह गायब हुआ था।

जब राजा को मुकुट वापस मिला, तो उन्होंने उस ईमानदार इंसान को इनाम देने का निश्चय किया। उन्होंने गांव में घोषणा की और दीनदयाल राजा के पास गया। दीनदयाल ने सच्चाई बताई। राजा उसकी ईमानदारी और नेकी से बहुत प्रसन्न हुए, उन्होंने दीनदयाल को गांव में उसकी मदद के लिए बहुत सारा सोना और धन दिया।

इस कहानी के द्वारा हमें यह सिख मिलती है कि सत्य और नैतिकता का मार्ग हमेशा हितकारी होता है और अंततः विजय हमेशा सत्य की होती है।

आज भी वह अदृश्य मुकुट की कथा ‘अदृश्य मुकुट: The Invisible Crown’ के नाम से काशी के गाँव में प्रसिद्ध है, और उसकी शिक्षा हमें यह बताती है कि साधारणता में भी असाधारणता का वास हो सकता है।


यह लंबी कथा न सिर्फ एक मनोरंजक गाथा है बल्कि यह उस ऋषि वाक्य को भी प्रतिपादित करती है कि सत्य, नीति, और धर्म ही जीवन के सच्चे रत्न हैं।

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