यह कहानी है राजस्थान के रेगिस्तान के एक छोटे से गाँव की, जहां रहता था एक साहसी बालक, जिसका नाम वीरू था। वीरू की उम्र थी महज बारह वर्ष पर उसके कारनामे थे बड़े वीर जैसे। कहा जाता है कि वीरू के साहस की कहानियाँ इतनी प्रसिद्ध थीं कि रेगिस्तान की धूल भी उसके नाम से थरथराती थी।
एक दिन गाँव में आई बड़ी विपदा। एक भयानक रेतीले तूफान ने गाँव को अपने विकट चपेट में ले लिया। सभी गाँववाले काँप रहे थे, पर वीरू उस डर को चीरता हुआ बाहर निकला। उसने पूर्ण धैर्य और साहस के साथ गाँववालों की मदद करने की ठान ली।
वीरू ने गाँववालों के साथ मिलकर सभी घरों को सुरक्षित जगहों पर पहुँचाया। चूंकि गाँव के कुएँ में रेत भर गई थी, पानी की भारी कमी थी। वीरू ने अपने मित्रों के साथ मिलकर, एक रात में ही नया कुआၺ खोद डाला और गाँव की प्यास बुझा दी।
वीरू की इस बहादुरी की चर्चा पड़ोसी गाँवों में भी फैल गई। उसके साहस और कार्यों की प्रशंसा हर जगह होने लगी। एक जगह ऐसी भी आयी जब वीरू ने अकेले ही डाकुओं के एक समूह को परास्त किया और गाँववालों को उनके चंगुल से बचाया।
इसी बहादुरी के कारण वीरू नहीं केवल अपने गाँव के नहीं, बल्कि पूरे इलाके के गौरव बन गए। उनके साहस और उनकी नेकी की कहानी आज भी गाँव के बच्चों को प्रेरित करती है। यह कहानी सिखाती है कि साहस और दृढ़ निश्चय किसी भी संकट को पार पाने की कुंजी है।