एक सरसरी नदी के किनारे, एक सुखदायी जामुन का पेड़ लहलहाता था। इस पेड़ पर एक चतुर बंदर रहता था, जो उसके मीठे फलों को खाकर अपना गुजारा करता था। नदी में, एक बड़ा मगरमच्छ रहता था, जिसका नाम करालक था।
एक दिन, करालक नदी के किनारे आराम कर रहा था जहाँ बंदर ने उसे जामुन खाते देखा। नरम दिल बंदर ने उसे भी जामुन फेंक कर दिए, और इस तरह दोनों में दोस्ती हो गई। मगरमच्छ के घर लौटने पर, उसकी पत्नी ने, जो जामुन का स्वाद पहली बार चख रही थी, बंदर के दिल को खाने की इच्छा जताई, यह सुनिश्चित करते हुए कि बंदर का दिल उतना ही मीठा होगा जितना कि जामुन।
करालक, पत्नी की आज्ञा का पालन करते हुए, बंदर को नदी पार उसके पेड़ पर जाने का प्रस्ताव देता है, जहाँ और भी बहुत सारे जामुन हैं। अनजान बंदर कंधे पर चढ़कर साथ चल पड़ता है। जब वे पानी के मध्य में पहुँचते हैं, मगरमच्छ ने अपनी योजना बंदर को बताई।
चतुर बंदर, फौरन समझ गया कि उसकी जान खतरे में है, और उसने जल्दी से एक योजना बनाई। उसने मगरमच्छ से कहा, “अच्छा, ऐसा है! यह तो तुम्हें पहले ही बता देना चाहिए था; मेरा दिल तो पेड़ पर ही रहता है। चलो, वापिस चलते हैं और मेरा दिल ले आते हैं।”
मगरमच्छ उसकी बातों में आ गया और बंदर को वापस किनारे पर ले जाता है। जैसे ही किनारे पर पहुंचते हैं, बंदर, पेड़ पर कूद जाता है और मगरमच्छ को उसकी भोलापन का एहसास कराते हुए, अपनी जान बचा लेता है।
इस कथा से प्राप्त नैतिक शिक्षा यह है कि बुद्धिमत्ता और विवेक से आप किसी भी कठिन परिस्थिति से निजात पा सकते हैं, और जो धोखे में रहते हैं, वे अंततः अपनी चालाकी में ही फंस जाते हैं।