एक बार की बात है, एक छोटे से गाँव में,
सपनों के सौदागर ने डेरा था जमाया।
नन्ही किरण नाम की एक बच्ची थी वहाँ,
जिसके मन में हर दिन नया सपना आया।
उसके सपनों में रंग थे, था उम्मीद का संदेश,
की एक दिन वो चाँद पे जा कर रहेगी खेल।
पर सपने जब आँखों में बादल की तरह बरसे,
रुखी धरती की तरह गाँव उस सपने को तरसे।
सूरज की लालिमा उसे हर दिन ताकत देती,
चाँद की चांदनी से उसकी कल्पनाएँ सजती।
नन्ही किरण ने तय किया, वो अपने सपने सजाएगी,
हर परीक्षा में वो अपने हौसलों का दम दिखाएगी।
श्याम घटा में छिपी बिजली की तरह वो चमकी,
सपनों की उसने धरती पर एक नई बुनियाद रखी।
बच्चों को उसने पढ़ाया, बूढ़ों को बताई कहानी,
उम्मीद की नन्ही किरण ने बदल दी गाँव की रवानी।
एक दिन तो खुद गाँव के सरपंच ने उसे पुछा,
“किरण बता, तेरी इस यात्रा का अंजाम क्या हुआ?”
किरण मुस्कुराई, और बोली अपने कोमल स्वर में,
“सपने होते हैं तो राहें भी होती हैं, सरपंच जी!”
उस गाँव में जहाँ कभी उम्मीद न थी किसी को,
नन्ही किरण बन गई उम्मीद की नई मिसाल हर किसी को।
चाँद पे जा कर रहे या न रहे, ये अलग बात है,
पर हर छोटे सपने की शुरूआत यहीं से हो, ये सच्ची बात है।
और इस तरह, नन्ही किरण की कहानी गाँव में फैल गई,
हर बच्चे ने उसे सुना, और खुद के सपनों में पहेल गई।
कहतें हैं आज भी उस गाँव में, जब रात की चुप्पी छाए,
नन्ही किरण के सपनों की कहानी, तारों में मुस्कुराए।