एक सुन्दर झील के किनारे रहता था एक कछुआ,
साथ में उसके दो हंस भी थे, जो उसके ख़ास दोस्त बन गए था।
वे अक्सर एक साथ बैठा करते, और गप्पें मारा करते थे,
नई-नई जगहों की कहानियां हंस कछुए को सुनाया करते थे।
पर एक साल, झील सूखने लगी, सभी जल चर चिंतित हो गए,
हंसों ने फैसला किया कि वे जाएंगें दूर किसी और झील को ढूँढने।
कछुआ भी जाना चाहता था साथ, मगर उड़ नहीं सकता था,
दोनों हंस उसकी इस दुविधा का समाधान खोजने में लग गए था।
अंत में एक उपाय सोचा, एक डंडा उठाया,
कहा कछुए से कि डंडे को मुंह में दबाये रखा,
वे दोनों हंस डंडे के दोनों सिरों को पकड़ेंगे,
उड़ान भरेंगे, और कछुए को नई झील तक ले जाएँगे।
“पर याद रखो,” हंसों ने कछुए को चेतावनी दी थी,
“तुम्हें चुप रहना होगा, जरा भी न बोलना, बस डंडे को दबाये रखना।”
उड़ान भरी, सब कुछ ठीक चल रहा था,
तभी नीचे लोगों ने उन्हें देखा और शोर मचाना शुरू किया।
कछुआ उत्सुकता से बोलने लगा, भूल गया था चुप रहना,
और जैसे ही उसने मुंह खोला, वह नीचे गिर पड़ा और अपना अंत कर बैठा।
कथा का नैतिक यह है कि बिना सोचे-समझे बोलना,
कभी-कभी बहुत खतरनाक साबित हो सकता है और दु:खद हो सकता है अंजामना।