भूमिका:
प्राचीन भारत के एक छोटे से सपनों का गाँव चांदनीपुर, जहां हर रात चांदनी बिखेरने वाले एक चमत्कारी चांद की प्रशंसा की जाती थी, “सपनों का गाँव चांदनीपुर” एक ऐसी लोक कथा है जो प्रकृति और मनुष्य के बीच अद्वितीय बंधन को उजागर करती है।
गाँव के निवासी, खासकर एक बालक नामक ‘हरिहर’ ने संकल्प लिया सूर्योदय से सूर्यास्त तक चांदनी के उपहार को हर जन के घर तक पहुंचाने का।
कहानी का विवरण:
हरिहर, उत्सुकता और निश्चय की जिवंत मूर्ति, गाँव चांदनीपुर के महत्वपूर्ण उत्सव ‘चंद्रोत्सव’ की तैयारियों में जुटा था। इस दिन गाँव के लोग चांद की अपार कृपा के लिए आभार प्रदर्शित करते, मान्यता थी कि चांद की चांदनी खुशियों और स्वास्थ्य का प्रतीक है। हरिहर का सपना था कि वह इस उत्सव को और भी खास बनाए, और इसे अपने पीढ़ियों तक याद रखा जाए।
लेकिन, एक वर्ष, उत्सव से ठीक पहले, अचानक गाँव में घोर अंधकार छा गया। एक प्राकृतिक अवरोध के कारण चांद नजर नहीं आ रहा था। हरिहर ने निर्णय लिया कि वह गाँव के ज्योतिषियों और विद्वानों की मदद से प्राकृतिक बाधाओं को पार करेगा और चांदनी को वापस लाएगा।
हरिहर की भक्ति और दृढ़ संकल्प ने उसे अप्रत्याशित साहसिक कार्य पर ले जाया। वह पर्वतों को पार करके, जंगलों के माध्यम से, और अनजानी पगडण्डियों पर चल पड़ा। अपनी भावनाओं और गाँववालों की आशाओं को बल देते हुए, उसने अंततः एक प्राचीन मंदिर पहुँचकर एक खोयी हुई पुस्तक को ढूँढ निकाला, जिसमें चांदनी को वापस लाने का रहस्य छिपा था।
हरिहर की सफलता के बाद, गाँव में चांदनी फिर से बिखर गई और ‘चंद्रोत्सव’ अभूतपूर्व आनंद और उमंग के साथ मनाया गया। हरिहर न केवल चांदनीपुर का नायक बना, बल्कि उसने दिखा दिया कि विश्वास और प्रेम का प्रकाश किसी भी अंधकार को दूर कर सकता है।
नैतिक शिक्षा:
सपनों को सच करने के लिए अंतहीन संघर्ष और आत्मविश्वास चाहिए। “सपनों का गाँव चांदनीपुर” हमें सिखाती है कि साहस और एकता से ही सच्ची खुशियाँ मिलती हैं।