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मित्रभेद: धर्मबुद्धि और पापबुद्धि (Fable of Dharma and Deceit)

Fable of Dharma and Deceit

कथा आरंभ होती है…

एक समय की बात है, एक नगर में दो मित्र धर्मबुद्धि और पापबुद्धि रहा करते थे। धर्मबुद्धि एक ईमानदार और सज्जन व्यक्ति था, जबकि पापबुद्धि धूर्तता और जालसाजी के लिए बदनाम था। इसके बावजूद, दोनों बचपन से गहरे मित्र थे।

एक दिन पापबुद्धि ने धर्मबुद्धि को पैसा कमाने का एक विचार सुझाया जिसे सुनकर धर्मबुद्धि सहर्ष सम्मति दे दी। उन्होंने एक दुकान खोली और बड़ी मेहनत से अपना व्यापार खड़ा किया। धर्मबुद्धि की मेहनत और लगन से व्यापार फलने फूलने लगा। परंतु पापबुद्धि का मन कपट से भरा था और उसने अकेले में सारा लाभ कमाने की योजना बनाई।

दुकान खूब चल निकली और दोनों की कमाई धीरे-धीरे बढ़ने लगी। धर्मबुद्धि ने अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा गरीबों और जरुरतमंदों की सहायता में लगा दिया। आदर और सम्मान उसके कदम चूमते, परन्तु पापबुद्धि को यह सब नहीं भाता।

एक रात पापबुद्धि ने धर्मबुद्धि से कहा, “मित्र! हमने बहुत धन कमा लिया है, अब क्यूँ न हम इसे किसी सुरक्षित स्थान पर छुपा दें?” धर्मबुद्धि सहमत हो गया और दोनों ने मिलकर धन को एक पेड़ के नीचे खुदाई करके छुपा दिया।

कुछ समय बाद पापबुद्धि ने धन को चुराने की योजना बनाई और एक रात चोरी छुपे धन निकाल लिया। सुबह होते ही वह धर्मबुद्धि के पास जा पहुंचा और उसे सारा राज खोले बिना बीमारी का बहाना बनाकर बताया कि उसके पास एक ठग आया और धन चुरा ले गया। धर्मबुद्धि सीधा और सच्चा व्यक्ति था, उसने पापबुद्धि की बात पर विश्वास कर लिया और उसे सान्त्वना दी।

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लेकिन जब वे दोनों धन की जगह पर पहुँचे तो धर्मबुद्धि ने देखा कि धन गायब था। पापबुद्धि ने यह कहकर कि धर्मबुद्धि ने ही धन चुराया है, उस पर आरोप लगा दिया और नगर के बड़ों के पास ले जाकर उसे आरोपी बनाने लगा।

धर्मबुद्धि ने न्याय की गुहार लगाई और न्यायाधीश ने दोनों की कहानी सुनी। न्यायाधीश बड़ा बुद्धिमान था, उसने धर्मबुद्धि से कहा कि वह पेड़ से पूछेगा, धन के बारे में। जब पेड़ से प्रश्न किया गया, तो उसने कहा कि उसने पापबुद्धि को रात को धन चुराते हुए देखा था। पापबुद्धि पकड़ा गया और धर्मबुद्धि को न्याय मिला।

न्यायाधीश ने पापबुद्धि को सजा दी और धर्मबुद्धि को सारा धन वापस मिल गया। इस घटना ने नगर के लोगों को एक नया पाठ सिखाया कि बुराई का अंत बुरा होता है और सच्चाई की जीत होती है।

नैतिक शिक्षा: ईमानदारी और सच्चाई हमेशा विजयी होती है, जबकि धोखाधड़ी और बुराई का अंत हमेशा दुखद होता है।

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