किसी जंगल में एक राजाशेर था, बड़ा ही दुर्दांत,
हर दिन वह शिकार खोजता, मारता कई जानवर, था वह बड़ा निर्दयी और हांक।
सभी जानवर डरे हुए थे, उनका जीना हुआ दूभर,
एक दिन उनमें सभा बैठी, और निकाला गया एक समझौते का सुबर।
योजना यह थी कि हर रोज एक जानवर खुद जाएगा,
शेर के पास शिकार बनने, ताकि बाकी सब बचे रह पाएगा।
सभी सहमत हुए, और यह सिलसिला शुरू हो गया,
पर एक दिन खरगोश की बारी आई, और उसके पास आई बड़ी चिंता सता गया।
चालाक खरगोश ने सोचा एक उपाय,
उसने जाने में बहुत देर लगाई, और दिन चढ़ आया।
जब वह शेर के पास पहुंचा, तो दिखा बड़ा मायूस,
शेर गरजा, “तू इतना लेट क्यों है?” खरगोश सहमा, पर दिखा संतूस।
“महाराज,” खरगोश बोला, “मैं तो जल्दी निकला था,
लेकिन रास्ते में एक और शेर मिला, जो कहता था वही सच्चा राजा था।
उसने मुझे अपना शिकार बनाना चाहा, पर मैं तो आपकी भोज हूँ, इसलिए बच आया हूँ।”
राजाशेर क्रोध से भरा, “मुझसे बड़ा कोई राजा यहां कैसे हो सकता है?
मुझे उस ढोंगी तक ले चल, आज मैं उसका अंत कर दूंगा, वह समझेगा यह कैसे होता है।”
चतुर खरगोश ने शेर को उसकी मौत के कुएं तक ले गया,
जहां उसने देखा अपनी प्रतिबिंब जल में और गुस्से में कूद गया।
शेर समझा वह अपना प्रतिस्पर्धी था, और उसे करना चाहता है समाप्त,
कुएं में कूद कर वह डूब गया, और जंगल को मिल गई राहत।
खरगोश वापस सभी जानवरों के पास गया, सबको सच्चाई बताई,
आज से जंगल फिर से आजाद है, कोई आतंक नहीं, खुशियाँ ही खुशियाँ छाई।