एक समृद्ध गाँव के किनारे, नामकरण नाम का एक किसान रहता था। वह गाँव का सबसे धैर्यवान और कठिन परिश्रमी किसान था। नामकरण के पास एक छोटा सा खेत था, जिसमें वह अपने सभी प्रयासों के बावजूद, अपनी फसलों को लहलहाते हुए नहीं देख पाया था।
एक शाम, जब वह उदास मन से अपने सूखे खेतों को देख रहा था, तभी एक रहस्यमयी साधु उसके खेत के पास से गुजरा। साधु को नामकरण की कठिनाई का आभास हो गया और उसने नामकरण को एक मंत्र दिया, जिसे रोज खेत में जाकर तीन बार दोहराने की सलाह दी। साधु ने कहा, “इस मंत्र के प्रभाव से तुम्हारे खेत में अद्भुत फसल उगेगी, बस तुम्हें धैर्य रखना होगा और मंत्र में विश्वास बनाए रखना होगा।”
नामकरण ने साधु के निर्देशों का पालन किया और उसके बताए मंत्र को नियमित रूप से जपने लगा। कुछ ही दिनों में, उसके खेत हरे भरे हो गए और फूलों और फलों से लद गए। अन्य किसान नामकरण के खेत की समृद्धि देखकर चकित रह गए।
पड़ोसी, ईर्ष्या से भर उठे और उसकी सफलता का राज जानने के लिए उसके पीछे पड़ गए। नामकरण ने किसी को भी साधु के मंत्र और अपने प्रयासों के बारे में नहीं बताया लेकिन सफलता के अहंकार में, वह मंत्र जपना भूल गया। उसके खेत फिर से सूखने लगे और उसे अपनी गलती का एहसास हुआ।
नामकरण ने फिर से मंत्र जपना शुरू किया और इस बार उसने न केवल अपने खेतों की बल्कि अपने मन की भी सिंचाई की। उसने अहंकार को त्यागा और फिर से साधु की शिक्षाओं पर चलना शुरू किया। उसके खेत फिर से लहलहाने लगे और इस बार उसने अन्य किसानों की भी मदद की, उन्हें उसी मंत्र से अवगत करवाया और समझाया कि कठोर परिश्रम और धैर्य से ही वास्तविक सफलता मिलती है।
बदले में, अन्य किसानों के खेत भी फलने-फूलने लगे और गाँव में समृद्धि की नई लहर आई। यह सब नामकरण की धैर्य और उदारता का प्रतिफल था।
नैतिक शिक्षा: धैर्य और विश्वास के साथ किया गया परिश्रम हमेशा सफलता की ओर ले जाता है, और सच्ची सफलता वह होती है जिसमें सबका भला हो।
कहानी में अब एक नया मोड़ आया। नामकरण द्वारा सिखाए गए मंत्र का जादू गांव के हर खेत में चलने लगा था। गाँव में समृद्धि का सैलाब आ गया। लेकिन जैसा कि हमेशा होता है, सफलता ईर्ष्या को जन्म देती है। आस-पड़ोस के गांवों के लोग जब इस गाँव की समृद्धि की चर्चा सुनने लगे, उन्हें लगने लगा कि शायद यह गाँव कुछ जादू-टोने से इतना समृद्ध हो रहा है।
ऐसे में एक लोभी साहूकार जिसका नाम लोभधन था, उस गांव में आया और नामकरण से मिलकर उस मंत्र के विषय में जानने की कोशिश की। नामकरण ने शुरू में तो उसे मंत्र नहीं बताया, लेकिन लोभधन ने अपनी चालाकी से उसे जाल में फँसा लिया और अंतत: मंत्र प्राप्त कर लिया।
लोभधन ने उस मंत्र का उपयोग अपने लाभ के लिए किया और अपने गाँव में लौट कर उसे सबको बेचना शुरू कर दिया। अपने गाँव के लोगों ने बिना सोचे समझे उस मंत्र को खरीदा और अपने खेतों में उपयोग किया, लेकिन किसी के खेत में बदलाव नहीं आया। असल में साहूकार ने मंत्र को गलत तरीके से प्रयोग किया था, जिसके चलते उसके गाँव में न केवल फसलों में इजाफा न हो सका बल्कि समस्याएँ भी बढ़ने लगीं।
जब इसका पता नामकरण को चला, तो वह दुःखी हो उठा। उसने लोभधन के गाँव का दौरा किया और लोगों से समझाया कि यह मंत्र केवल पैसे से नहीं खरीदे जाने वाले होते, उनके प्रति सच्ची श्रद्धा और समर्पण होना चाहिए।
गाँववालों ने नामकरण के प्रयासों और उसके विचार की सराहना की और लोभधन से वापस अपने पैसे वसूले। लोभधन को भी अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने नामकरण से क्षमा याचना की।
अंत में, नामकरण ने गाँवके लोगों को सिखाया कि कड़ी मेहनत, ईमानदारी और धैर्य के साथ किया गया कर्म ही सफलता दिला सकता है, और मंत्रों का जादू उनकी श्रद्धा से होता है। इस तरह दो गाँव एक साथ फिर से समृद्ध और खुशहाल हो गए। नामकरण का नाम सभी गाँवों में प्रसिद्ध हो गया और उसे एक सम्मानित व्यक्ति के रूप में पूजा जाने लगा।
नैतिक शिक्षा: सही मार्ग और विधि से किया गया प्रयास ही सफलता का राज होता है, और छोटे-छोटे लालच हमें सच्ची खुशी नहीं दे सकते।