एक समय की बात है, एक गांव में दो भाई रामु और श्यामु रहते थे। उनके दादाजी ने अपने जीवनकाल में बहुत सारा धन कमाया था, और ये अफवाहें थीं कि इस धन को उन्होंने कहीं गुप्त स्थान में छिपा कर रखा है। दादाजी के मृत्यु के बाद, यह रहस्यमय धन गांव वालों के बीच बड़ी चर्चा का विषय बन गया।
रामु और श्यामु दोनों के दिलों में इस धन की खोज की तीव्र इच्छा थी, लेकिन स्वभाव से दोनों बहुत अलग थे। रामु मेहनती और धैर्यवान था, जबकि श्यामु को सब कुछ आसानी से और जल्दी में चाहिए होता था।
कहानी का विवरण:
एक दिन श्यामु ने रामु से कहा, “भाई, हमें दादाजी के छुपाए धन को ढूंढना चाहिए। वह हमारे जीवन को सरल और आरामदायक बना देगा।”
रामु ने सहमति में सिर हिलाते हुए कहा, “मैं भी यही सोच रहा था। हमें वह धन ढूंढने के लिए गांव के पुराने लोगों और दादाजी के मित्रों से मिलना चाहिए।”
उन दोनों ने अपनी खोज शुरू की। श्यामु ने कुछ ही दिनों में खोज त्याग दी, उसे वह धन जल्दी चाहिए था। वहीं रामु ने गांव के बुजुर्गों से बात की, अपने दादाजी के पुराने दोस्तों की शरण ली, और पुरानी किताबों और नक्शों की गहन जांच की।
अंत में, उसे एक सुराग मिला। एक पुरानी किताब में एक कविता थी जिसमें धन छिपाने का संकेत मिला। कविता कुछ इस प्रकार थी:
“जहाँ पूरब में सूरज नमस्कार करता,
और पीपल की छाया नीचे समाधि पर पड़ता,
वहाँ खोदो और देखो तुम क्या पाते हो,
दादा की दौलत तुम्हारे इंतज़ार में सोती हो।”
रामु ने तत्पर होकर पूरब की दिशा में स्थित पीपल के पेड़ को खोजा, जिसकी छाया समाधि पर पड़ती थी। उसने उस स्थान की खुदाई शुरू की और एक बड़ा संदूक पाया, जिसमें सोने के सिक्के, जवाहरात और कीमती पत्थर भरे हुए थे। उसने इसे श्यामु के साथ बाँट लिया, जो उसकी इस सफलता पर हैरान था।
रामु की मेहनत, धैर्य और बुद्धिमत्ता ने उसे वह धन दिलाया, जबकि श्यामु को उसकी आलस्य और अधीरता ने निराश किया।
नैतिक शिक्षा:
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि धैर्य और निरंतर प्रयत्न से ही सफलता मिलती है।