एक समय की बात है, विन्ध्य पर्वत श्रृंखला के निकट धरनीपुर नामक एक समृद्ध गाँव बसा करता था। इस गाँव में एक ग्वाला (गोपाल) रहता था, जिसका नाम मोहन था। मोहन सरल स्वभाव का पर अपने दृश्य में अद्वितीय बुद्धि रखने वाला एक बुद्धिमान ग्वाला था। उसे अपने गाँव और अपनी गायों से बहुत प्रेम था, और वह सभी गावँ के लोगों का आदर करता था।
एक दिन जब मोहन सुबह-सुबह अपनी गायों को लेकर जंगल में चराने गया, तो उसने देखा कि एक अजीब-सा पशु मरा पड़ा है। वह पशु वहाँ के किसी भी जानवर से अलग था। मोहन ने अपनी बुद्धिमानी से सोचा कि यह किसी जानवर की और किसी प्राणी की करतूत नहीं हो सकती। वह समझ गया कि यह किसी शिकारी द्वारा की गई हरकत थी।
जब वह शाम को गाँव वापस आया और इस बारे में सभी को बताया, तब गाँव वालों में खलबली मच गई। उन्होंने फैसला किया कि इस मामले की गहनता से जाँच करनी चाहिए। मोहन ने स्वयं यह जिम्मा उठाने का निर्णय लिया।
अगले कुछ दिनों तक, मोहन ने ध्यान से जंगल के अंदर और बाहर का निरीक्षण किया। वह रात को अपनी लालटेन लेकर निकलता और शिकारियों के निशान को खोजता। उसकी अद्भुत बुद्धि और सूझ-बूझ से उसे एक दिन एक अद्भुत सुराग मिला। उसने जान लिया कि ये शिकारी गाँव के ही एक अमीर लोगों में से एक थे, जो अक्सर रात में अपने खेल के लिए जानवरों का शिकार किया करते थे।
मोहन ने इस बात को सार्वजनिक किया और शिकारी के सामने एक शर्त रखी। शर्त यह थी कि यदि शिकारी ने अपने कर्मों का पश्चाताप किया और गाँव की भलाई के लिए काम करना शुरू किया, तो वह उसे क्षमा कर देंगे, अन्�ाथा पूरे गाँव और राज्य का कानून उसके खिलाफ कठोर कदम उठाएगा। शिकारी, जिनका नाम दुर्जन सिंह था, ने मोहन की शर्त को मान लिया और उसने अपने बुरे कर्मों को छोड़ दिया।
उसके बाद से, धरनीपुर गाँव में शिकार करने की कोई घटना नहीं हुई। मोहन ने अपनी बुद्धि और साहस से न सिर्फ अपने गाँव की रक्षा की बल्कि एक बुरे आदमी को भी सही रास्ता दिखाया।
इस कथा के प्रेरणास्रोत से समझ आता है कि बुद्धिमानी से बड़े से बड़े संकट को भी हल किया जा सकता है, और सत्य एवं अच्छाई की हमेशा जीत होती है। ‘बुद्धिमान ग्वाला: The Wise Shepherd’ कथा भारतीय लोक कथाओं के संग्रह में एक अमूल्य रत्न के समान है।
यह है आपके लिए एक लंबी और सिख देने वाली हिंदी लोक कथा। इस कहानी में नैतिकता, बुद्धि और समाज के प्रति जागरूकता की सीख मिलती है।