बहुत समय पहले की बात है, मध्य भारत के किसी घने जंगल में, सभी जानवरों में एक भेड़िया बहुत समझदार माना जाता था। वह अपने शिकार को चुनाव करने में बहुत ही चतुर था। एक दिन भेड़िये को बहुत भूख लगी और उसने फैसला किया कि वह एक खरगोश को ही अपना भोजन बनाएगा।
भेड़िये ने खरगोशों के बिल के पास जाकर छुपकर बैठ गया। काफी इंतजार के बाद, एक बहुत ही चालाक खरगोश उस बिल से बाहर निकला। उसका नाम चतुरक था। चतुरक अपने बुद्धिमानी और समझदारी के लिए पूरे जंगल में विख्यात था।
जैसे ही खरगोश बिल से बाहर आया, भेड़िये ने उस पर झपट्टा मारने का सोचा, पर चतुरक खरगोश की नजरें भेड़िये पर थी। चतुरक ने तत्काल ही एक युक्ति सोची और भेड़िया से बोला, “ओ समझदार भेड़िये! मुझे खाने से पहले क्या हम थोड़ी बातचीत कर सकते हैं?”
भेड़िया थोड़ा चकित होकर बोला, “ठीक है, बोलो क्या कहना है तुम्हारा?”
चतुरक ने कहा, “मेरी तुमसे अरदास है कि आज के दिन किसी नए जल स्रोत की खोज में जाना, मैंने सुना है कि जंगल के उत्तरी भाग में एक नया झरना प्रकट हुआ है, जिसका पानी अमृत के समान होता है। यही नहीं, वहाँ बहुत सारे खरगोश भी तो हैं।”
भेड़िये की आँखों में लालच की चमक आ गई और वह उस नए झरने की ओर चल पड़ा। चतुरक खरगोश ने मन ही मन राहत की सांस ली और खुद को बचाने के लिए अपनी चतुराई पर गर्व महसूस किया।
लेकिन नया झरना [न होते हुए भी, भेड़िया समझ गया कि खरगोश ने उसे धोखा दिया है। परन्तु, भेड़िये ने इस बार भी सोच समझ कर कार्य करने का निश्चय किया। उसने सोचा कि वह खरगोश के परिवार को नहीं चोट पहुँचाएगा, बल्कि अपने आहार के लिए जंगल में उपलब्ध अन्य स्रोतों की खोज करेगा। समझदारी से काम लेने के कारण, भेड़िया जंगल में सम्मानित हो गया और अन्य जानवर उसे सम्मान देने लगे।
नैतिक शिक्षा: समझदारी और चतुराई बलवान से भी बलवान होती है।
जैसे जैसे समय बीता, भेड़िया और भी समझदार बनता गया। उसे यह एहसास हो गया कि जंगल के अन्य जीवों को सम्मान देने में उसकी अपनी भलाई है। उधर, चतुरक खरगोश और भी चालाक हो गया और उसने जंगल में अपना एक नया समूह बनाया। इस समूह में छोटे बड़े सभी जानवर शामिल थे जो एक दूसरे की मदद करते और खतरों से एक साथ मिलकर लड़ते।
इसी बीच जंगल में एक बड़ा ही खतरा आ पहुंचा। एक दिन जब सभी जानवर सुबह के समय अपने अपने कामों में व्यस्त थे, एक भयानक आग सुलग उठी। आग ने तेजी से जंगल को अपनी चपेट में लिया और सभी जानवर घबराकर इधर उधर भागने लगे। अब जंगल के राजा गायना धूप से ज्यादा बुद्धिमानी और चतुराई की जरुरत थी।
चतुरक खरगोश ने तुरंत ही एक योजना बनायी और सभी छोटे जानवरों को एकत्रित किया। उसने उनसे कहा, “अगर हम सब मिलकर जंगल के पूर्वी हिस्से में बने बड़े तालाब की ओर जाएँ, तो हम इस आग से बच सकते हैं।” सभी छोटे जानवर चतुरक के पीछे हो लिए और जल्दी से तालाब की ओर चल पड़े।
उधर, समझदार भेड़िया भी आगे बढ़कर जवाबदेही उठाने का निर्णय लिया। उसने बड़े जानवरों को एक साथ किया, और उन्हें आग के फैलाव को रोकने के लिए काम पर लगाया। कुछ हाथियों ने अपनी सूंड से पानी उठाकर आग पर फेकना शुरू किया, कुछ जानवरों ने मिट्टी उठाकर आग को ढकना शुरू किया।
घंटों की मेहनत के बाद, आखिरकार वह सफल हो गए। आग धीरे धीरे बुझने लगी और जंगल में फिर से शांति छा गयी। सभी जानवर सामूहिक प्रयासों और भाईचारे की भावना से गद्गद् हुए।
उस दिन जंगल में यह सीख फिर से मजबूत हो गयी कि कोई भी समस्या हो, बुद्धिमत्ता और साहस से उसका सामना किया जा सकता है, और एक विपरीत स्थिति में भी साथ मिलकर काम करना ही असली शक्ति है।
नैतिक शिक्षा: अन्याय और विपत्तियों का सामना करने में एकता और सहयोग ही सबसे बड़ी ताकत है।