यह कहानी है एक प्राचीन और भयानक हवेली की, जो एक छोटे से ग्रामीण क्षेत्र में स्थित थी। गाँव का नाम था “मृत्यु नगरी”, और इस गाँव की पहचान उस खतरनाक हवेली से होती थी। इस हवेली का निर्माण सैकड़ों साल पहले एक अत्यंत धनी जमींदार “राजेश ठाकुर” ने किया था।
राजेश ठाकुर अपने समय का एक निर्मम व्यक्ति था। हवेली के निर्माण के दौरान कई निर्दोष मजदूरों की जान जाने की घटनाएँ सामने आईं। कहा जाता है कि ठाकुर ने हवेली में दबी खजाने की खोज में कई बलिदान दिए थे। इन घटनाओं के बाद, हवेली में अजीब और डरावनी घटनाएं घटित होने लगीं, और धीरे-धीरे वह दोबारा कभी न खुलने वाली जगह बन गई।
सालों बाद, एक युवा शोधकर्ता “वीरेंद्र” ने यह तय किया कि वह इस हवेली के रहस्यों का पता लगाएगा। वीरेंद्र का मानना था कि इन घटनाओं के पीछे कुछ न कुछ सच्चाई जरूर है। उसके साथ उसकी चार दोस्त, आर्यन, सिमा, रोहित और नेहा भी जाने के लिए तैयार हो गए।
एक दिन, सभी मित्र पूरी तयारी के साथ हवेली की ओर निकल पड़े। हवेली पहुँचते ही, उनकी आँखों के सामने एक विचित्र दृश्य था – टूटे-फूटे दरवाजे, खिड़कियों पर जाले, बड़ी-बड़ी दीवारें और चारों तरफ सन्नाटा। हवेली के दरवाजे पर पहुंचकर, वीरेंद्र ने अपनी मशाल जलाई और सब अंदर की ओर बढ़ गए।
जैसे ही उन्होंने हवेली में कदम रखा, चारों ओर सन्नाटा बढ़ गया और हल्की हल्की ठंडी हवा चलने लगी। उन्होंने हवेली के विभिन्न हिस्सों की जांच शुरू कर दी। हर कक्ष में अजीब और डरावनी चीजें थीं – टूटे हुए फर्नीचर, जमीन पर खून के धब्बे और दीवारों पर अजीब से निशान।
जाँच करते-करते, वे हवेली के एक बड़े हॉल में पहुँच गए, जहाँ एक राजसी सिंहासन पड़ा था। सिंहासन देखकर उन्हें महसूस हुआ कि यहाँ कुछ रहस्यमय है। जैसे ही उन्होंने सिंहासन को छुआ, पूरा कक्ष अँधेरे में डूब गया और हवा में ठंडक बढ़ गई। अगले ही पल, एक भूतिया आकृति उनके सामने प्रकट हुई।
वह आकृति राजेश ठाकुर की आत्मा थी। आत्मा ने क्रोधित आवाज में कहा, “इस हवेली में तुम्हारा स्वागत है। लेकिन जो भी मेरे रहस्यों को जानने का प्रयास करेगा, उसे मुझसे सामना करना होगा।”
वीरेंद्र और उसके दोस्त डर गए, लेकिन उन्होंने साहस दिखाया। वीरेंद्र ने आत्मा से पूछा, “हम यहां सच जानने आए हैं। तुम्हें किसी विशेष कारण से शापित किया गया है। हम कैसे मदद कर सकते हैं?”
आत्मा ने बताया, “मुझे मेरे कुकर्मों की सजा मिली है। मैंने कई निर्दोषों की बलि दी थी। अगर तुम मेरे हाथों मारे गए निर्दुषों की आत्माओं को शांति दिला सकते हो, तो मैं भी इस शाप से मुक्त हो सकता हूँ।”
वीरेंद्र और उसके दोस्तों ने आत्मा की बात मानी और ठान लिया कि वे निर्दोषों की आत्माओं को शांति दिलाने के लिए कुछ भी करेंगे। उन्होंने हवेली के तहखानों की ओर कदम बढ़ाए, जहाँ कहा जाता था कि उन निर्दोषों की आत्माएं बंद थीं।
तहखाने में प्रवेश करते ही, एक भारी दरवाजा उनके सामने आया, जिसे खोलने के लिए उन्हें ऊपरी मंजिल से चाबी लानी पड़ी। ऊपरी मंजिल पर पहुंचते ही, उन्होंने एक पुराने संदूक में वह चाबी पाई। चाबी लेकर वे तहखाने में वापस आए और दरवाजा खोला।
जैसे ही दरवाजा खुला, उनके सामने भयानक दृश्य प्रकट हुआ। तहखाने के अंदर खून के धब्बों से सनी दीवारें, भूमि और जगह-जगह हवेली के निर्माण के दौरान मारे गए मजदूरों की आत्माएँ घूम रही थीं। आत्माएँ बहुत दुखी थीं और उनके चेहरों पर दर्द झलक रहा था।
वीरेंद्र ने आत्माओं से बात की और उन्हें शांति दिलाने का आश्वासन दिया। वीरेंद्र और उसके दोस्तों ने आसपास के मंदिर से पवित्र जल और मंत्र लेकर आत्माओं की शांति के लिए पूजा की। पूजा के बाद, आत्माओं के चेहरे पर शांति झलकने लगी और वे धीरे-धीरे अदृश्य हो गईं।
आत्माओं के शांति प्राप्त करने के बाद, राजेश ठाकुर की आत्मा फिर से प्रकट हुई और कहा, “तुम्हारे इस नेक काम से मुझे भी शांति मिली है। मेरी आत्मा अब मुक्त हो रही है।”
राजेश ठाकुर की आत्मा ने वीरेंद्र और उसके दोस्तों को धन्यवाद कहा और हमेशा के लिए अदृश्य हो गई। हवेली से भूतिया गतिविधियाँ समाप्त हो गईं और गाँव में फिर से शांति का माहौल लौट आया।
वीरेंद्र और उसके दोस्तों की साहसिकता और निष्ठा ने हवेली के रहस्य को उजागर किया और वहां की आत्माओं को शांति दिलाई। इस घटना के बाद ‘शापित हवेली’ अब ‘शांति हवेली’ के नाम से जानी जाने लगी और वीरेंद्र और उसके दोस्तों की कहानी हमेशा के लिए यादगार बन गई।