किसी नदी के किनारे, एक बड़े, फलदार जामुन के पेड़ पर,
रहता था एक चतुर बंदर, जो करता था हर दिन खूब मस्ती और लगाता था छलांगे बेपर।
नदी में रहता था एक मगरमच्छ, उसे भी थी जामुन की बड़ी आस,
पर वह चढ़ नहीं सकता था पेड़ पर, इसलिए रहता था बड़ा उदास।
बंदर ने मगरमच्छ को देखा, बन गया उसका दोस्त,
जामुन फेंक कर देता रहा, उसकी भूख मिटाने को होस्ट।
मगरमच्छ की पत्नी को जब पता चला, जामुनों के रस का राज़,
उसने चाहा कि खाए वह बंदर का हृदय, जो हो सकता था बड़ा खास।
मगरमच्छ, जिसे बंदर पर आता था स्नेह,
फिर भी अपनी पत्नी की बातों में आकर, रचने लगा एक घातक देह।
बंदर को धोखा देने का बनाया गया एक कुटिल खेल,
‘आओ नदी के दूसरी ओर,’ मगरमच्छ ने कहा, ‘वहां है जामुनों से सजा एक और मेल।’
बंदर, अनजान छल के, मगरमच्छ की पीठ पर बैठ गया,
नदी के बीच में मगरमच्छ ने अपनी योजना बंदर को व्यक्तिगत।
‘पत्नी चाहती है तुम्हारा हृदय,’ मगरमच्छ ने कहा साफ-साफ,
‘मैंने सोचा जीते जी हृदय तो नहीं दे सकता, इसलिए तुम्हें मारा जाए आज ही माफ़।’
बंदर, स्थिति को तुरंत समझ गया,
और चतुराई से उसने एक उपाय निकाला।
मगरमच्छ से बोला, ‘हे मेरे मरममच्छ मित्र, तुमने बात नहीं बताई,
हृदय तो मैं अक्सर पेड़ पर ही छोड़ आता हूँ, चलो लौट चलें, तुम्हारी पत्नी को दें यह कनाई।’
मगरमच्छ धोखे में आ गया और किनारे ले आया बंदर को,
बंदर तेज़ी से पेड़ पर चढ़ गया, मगरमच्छ को छोड़ यों ताकते रहंगे हो।
बंदर ने उसे सारी सच्चाई बता दी, खुद को बचा लिया एक बढ़िया तरीके से,
समझा कि नहीं हर मित्र कहलाने वाला होता है सच्चा मित्र, बचना पड़ता है बुराई से।